पडोसी के स्कूटर को देख अक्सर मेरी आँखें भर आतीं है मैं उस पर एक कविता लिखना चाहता हूँ । वह कविता निश्चित ही करुण रस की होगी क्यों कि उस स्कूटर में करुणा का सागर भरा हुआ है। सुबह सुबह उसे स्टार्ट करते समय पडोसी का लडका जब उसका एक्सीलेटर रूपी कान क्रूरता पूर्वक ऐठता है तो वह ऐसा भयंकर आर्तनाद करता है जैसे कोई सनकी ऊँटनी पीटी जाने पर बमक कर चिल्ला रही हो । हाय अबला ऊँटनी हाय अबला स्कूटर ! रात खुशी खुशी पार्क किए जाने के बाद भी वह सुबह रूठा मिलता है और सडक पर इधर से उधर अनेकों बार धक्का लगाए जाने पर भी स्टार्ट होने की ऊर्जा वह बुजुर्ग इस उमर में लाख यत्नों के बाद भी नहीं जुटा पाता। स्टार्ट होते ही वह दीन अपनी करुण पुकार से सारा वातावरण हिला डालता है बच्चे ताली पीट पीट चिल्लाते हैं मेरा हृदय विलख विलख रो पडता है और मैं स¨चता हँ कि दुनिया अथाह पीडा के समुन्दर के सिवा कुछ नहीं । अपने कुल के गौरव जिस ऐतिहासिक स्कूटर को हमारे पड़ोसी का लडका रणबांकुरे घोड़े से कम नहीं समझता वह मुझे कहीं से जबरन पकड कर लाया गया एक लुटा पिटा मजदूर दिखता है। फटी बेहाल सीट, चाँय चाँय मूड की तरह दांए बाएं हिल डुल कर चलते पहिए, जगह जगह से फूला पिचका मडगार्ड, बदरंग हैंडल, टेप लगा कर चिपकाया गया हेड लाइट का शीशा ऐसे जैसे अस्पताल से निकला कोई बदनसीब पकड कर बंधुआ बना लिया गया हो और शहर में खुले आम जुल्म ओ सितम के बीच दौड़ लगाने को मजबूर हो । हार्न ऐसा जैसे कोई गमजदा बकरी अपना गला फाडे डाल रही हो । पडोसी का लडका उस भोले और निर्दोष स्कूटर की गहन पीडा की अवहेलना करता हुआ उस बेजुबान पर सवार हो कभी मेला तो कभी सिनेमाअऔर कभी कभी दोस्तों के साथ रंगरंगेलिया मनाने किसी रेस्तरां अथवा जाता है तो मैं इस संसार के विरोधाभास का अध्ययन करता हूं: एक तरफ जश्न में डूबे इंसान और दूसरी तरफ उदास खडा यह शोषित शोकाकुल स्कूटर । इसकी बेचारगी देख कागजात आदि चेक करने खडे “ गुर्र टाइप “ मूँछ¨ वाले प्रतिभाशाली ठुल्ले भाई स्वयं ही क्षमा माँग इसे आगे जाने का इशारा कर देतें हैं धन्य है हमारी लोकप्रिय पुलिस के ये विद्वान सपूत जो इतना तो समझ लेते हैं कि सताए को आखिर क्या सताना। शहर भर के मैकेनिक इसे देख श्रद्धा से झुका झुका किनारे हट लेते हैं मरे को और क्या मारना ! मन्नू इस असहाय पर क्षमता से तीन गुना बोझ लाद कर इसका शोषण करते हुए ही ही कर दाँत निकाले इस स्वार्थी समाज की आंखों के सामने ही दौड़ लगआता है फिर भी उस को बचाने न कोई व्यक्ति न संस्था आगे आती है। इस विषय पर चूँकि किसी कवि ने लेखनी नहीं उठाई इसलिए मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरी करुण रस की वह कविता समाज द्वारा सताए जा रहे ऐसे लाखों स्कूटरओ के हित में एक vidroh कारित करनें में सफल हो paayegee और एक दिन ऐसा भी आएगा कि अपमान व अन्याय के तले जीवन व्यतीत करते देश के सभी स्कूटर मुक्त हो सम्मान का जीवन जिएंगें और इसमें मेरी कविता का महत्वपूर्ण yogdaan माना जाएगा !
बुधवार, 25 नवंबर 2009
पडोसी के स्कूटर को देख अक्सर मेरी आँखें भर आतीं है मैं उस पर एक कविता लिखना चाहता हूँ । वह कविता निश्चित ही करुण रस की होगी क्यों कि उस स्कूटर में करुणा का सागर भरा हुआ है। सुबह सुबह उसे स्टार्ट करते समय पडोसी का लडका जब उसका एक्सीलेटर रूपी कान क्रूरता पूर्वक ऐठता है तो वह ऐसा भयंकर आर्तनाद करता है जैसे कोई सनकी ऊँटनी पीटी जाने पर बमक कर चिल्ला रही हो । हाय अबला ऊँटनी हाय अबला स्कूटर ! रात खुशी खुशी पार्क किए जाने के बाद भी वह सुबह रूठा मिलता है और सडक पर इधर से उधर अनेकों बार धक्का लगाए जाने पर भी स्टार्ट होने की ऊर्जा वह बुजुर्ग इस उमर में लाख यत्नों के बाद भी नहीं जुटा पाता। स्टार्ट होते ही वह दीन अपनी करुण पुकार से सारा वातावरण हिला डालता है बच्चे ताली पीट पीट चिल्लाते हैं मेरा हृदय विलख विलख रो पडता है और मैं स¨चता हँ कि दुनिया अथाह पीडा के समुन्दर के सिवा कुछ नहीं । अपने कुल के गौरव जिस ऐतिहासिक स्कूटर को हमारे पड़ोसी का लडका रणबांकुरे घोड़े से कम नहीं समझता वह मुझे कहीं से जबरन पकड कर लाया गया एक लुटा पिटा मजदूर दिखता है। फटी बेहाल सीट, चाँय चाँय मूड की तरह दांए बाएं हिल डुल कर चलते पहिए, जगह जगह से फूला पिचका मडगार्ड, बदरंग हैंडल, टेप लगा कर चिपकाया गया हेड लाइट का शीशा ऐसे जैसे अस्पताल से निकला कोई बदनसीब पकड कर बंधुआ बना लिया गया हो और शहर में खुले आम जुल्म ओ सितम के बीच दौड़ लगाने को मजबूर हो । हार्न ऐसा जैसे कोई गमजदा बकरी अपना गला फाडे डाल रही हो । पडोसी का लडका उस भोले और निर्दोष स्कूटर की गहन पीडा की अवहेलना करता हुआ उस बेजुबान पर सवार हो कभी मेला तो कभी सिनेमाअऔर कभी कभी दोस्तों के साथ रंगरंगेलिया मनाने किसी रेस्तरां अथवा जाता है तो मैं इस संसार के विरोधाभास का अध्ययन करता हूं: एक तरफ जश्न में डूबे इंसान और दूसरी तरफ उदास खडा यह शोषित शोकाकुल स्कूटर । इसकी बेचारगी देख कागजात आदि चेक करने खडे “ गुर्र टाइप “ मूँछ¨ वाले प्रतिभाशाली ठुल्ले भाई स्वयं ही क्षमा माँग इसे आगे जाने का इशारा कर देतें हैं धन्य है हमारी लोकप्रिय पुलिस के ये विद्वान सपूत जो इतना तो समझ लेते हैं कि सताए को आखिर क्या सताना। शहर भर के मैकेनिक इसे देख श्रद्धा से झुका झुका किनारे हट लेते हैं मरे को और क्या मारना ! मन्नू इस असहाय पर क्षमता से तीन गुना बोझ लाद कर इसका शोषण करते हुए ही ही कर दाँत निकाले इस स्वार्थी समाज की आंखों के सामने ही दौड़ लगआता है फिर भी उस को बचाने न कोई व्यक्ति न संस्था आगे आती है। इस विषय पर चूँकि किसी कवि ने लेखनी नहीं उठाई इसलिए मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरी करुण रस की वह कविता समाज द्वारा सताए जा रहे ऐसे लाखों स्कूटरओ के हित में एक vidroh कारित करनें में सफल हो paayegee और एक दिन ऐसा भी आएगा कि अपमान व अन्याय के तले जीवन व्यतीत करते देश के सभी स्कूटर मुक्त हो सम्मान का जीवन जिएंगें और इसमें मेरी कविता का महत्वपूर्ण yogdaan माना जाएगा !
शुक्रवार, 6 नवंबर 2009
ननकउवा के काका
दुइनो जनें मिलि हियँइ कमाबै जिन जा तू बहेरे ,
कहे रह्या कि घर बनवउबे पक्का कुआं खोदउबे
का तू कसम उठाया कवनों या पर नारि भुलान्या
जियरा मा तोहरे का एस बसिगा परदेसवा मा समान्या
गुरुवार, 5 नवंबर 2009
सब दाबे डंडा काँख चलेन
सोमवार, 2 नवंबर 2009
बिसंहिधिया तुहैं बोलावत बा
---- सत्येन्द्र श्रीवास्तव ”सच्चन“
ऊ अमवन कै सरदार रहा ,
ऊ सीपर कै भंडार रहा,
जे देखे अहै उहै जाने ऊ केतना छायादार रहा।
ऊ भरे सुगंध मिठास रहा ,
सब आमन मा ऊ खास रहा।
हम कहब तीत चाहे लागे,
ऊ अपनेन मा इतिहास रहा।।
ऊ संत पेड जग छोड़ि गवा,
पुरवा से नाता तोड़ि गवा
“ ल्या आपन गाँव सम्हार लिया “
कहि दुखी हृदय मुँह मुंह मोड़ि गवा ।
ऊ चला गवा अब ना आए,
लउटे ना केतनव गोहराये
ऊ चला गवाअब ना आए अब ना आए।।
कूबे भरोसे बुद्धू बुधई
ढेला सुग्गा फेरई रोंघई
मंतो¨रा दसई नैपाली
ऊ देखेस भाय बहुत मनई।
परसाधी गंगादीन का
ऊ बीपत अव बिपताइन का
अव जेकरे मरे गाँव रोवा
ऊ देखेस वहिं तिवराइन का।।
केतनन का जनमत देखेस
केतनन कहैं मरत देखेस
दिन सबकै गिरत उठत देखेस
केतनन का बनत बिगडत देखेस।
छोटकवा उठा अव बडा होइगा
जे गिरा रहा ऊ खडा हो¨इगा
ऊ सोचत चुप्पे खडा रहा
जग मा केतना नखडा होइगा।।
मनई मनई का खात बाय
रख्खे बा मुल ललचात बाय
केहु सेटत नाय अहै केहु का
अपनेन मा मगन देखात बाय।
सचरी बा अब तव राजिनीति
उठिगै दुनिया से प्रेम प्रीत
थैली मा मुकदमा कै कागज
आपन डफली आपन बा गीत।।
सगरे दिन अमवा बिनत रही,
गाही लगाइ के गिनत रही,
हम ओकरी डारी पै बइठा,
सुलतापुर टेसन लखत रही।
दुपहरिया खुब मन्नात रहै,
हम पेडे़ तरे छहांत रही,
जरिया के गाहिन आम बिने,
हम धरे औखात रही।
रमसुखवा से दुपहरिया भै
केतना किस्सा सुनि लेत रहे,
हर किस्सा पै बिसंहिधिया कै
एक घुला आम हम देत रहे।
ऊ एक पेड़ यादें हजार,
हम कही काव !
कही सकित नाय,
वँह पेडे़ का - बस इहै कहब
-हम भूलि केनि रहि सकित नाय,
रमसुखवा कतहूँ चला गवा,
बिसंहिधियौ तौ अब नाय रहा,
केहु झटकै अबै तलुक मोर जिउ,
ओन दुइनो का गोहराय रहा।
बिसंहिधिया केनि छाया मां
हम खेलि खेलि के बड़ा भएन
बिधना हमका बनबास केहेस
सब कहैं कि गोड़ पै खड़ा भएन
आजौ कबहुँ दुपहरिया मां,
जब भुंइ तावा अस तपत रहै
या बहुत देर तक रात गए,
जांगी औ बयारो चलत रहै।
लागत है केहु गोहरावत बा -
हे सच्चन, हे सच्चन,! भइया,
तू लौटि घरे का आइ जा
बिसंहिधिया तुहैं बोलावत बा