मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

बनता जा रहा है कारवां

हम हैं सुलतानपुरी का नारा बुलंद करने वाले की संख्या बढ़ती जा रही है। इधर कुछ व्यस्त रहने की वजह से इसे ब्लागवाणी और चिट्ठाजगत से नहीं जोड़ पाया। जल्द ही हम ब्लागवाणी और चिट्ठाजगत से जुड़ जाएंगे। अभी तक भाई आशीष श्रीवास्तव, मुकेश तिवारी, भास्कर शुक्ला, विजय विद्रोही, अशोक जायसवाल और अरुण जायसवाल योगदानकर्ता के रूप में जुड़ चुके हैं। हमने न्योता विजय विद्रोही को भेजा था। पहली बार मेलआईडी गलत हो गया। लेकिन दूसरी बार सही मेलआईडी पर न्योता गया तो उन्होंने भाई अरुण जायसवाल और अशोक जायसवाल को भी जोड़ लिया। इसके लिए उन्हें धन्यवाद। आभार।

रविवार, 11 अक्तूबर 2009

बुआ से परिहास नैतिक अथवा अनैतिक

जैसे अपने अटल बिहारी वाजपेयी क्रानिक बैचलर हैं वैसे ही मैं क्रानिक बदतमीज हूं.सो मेरी बदतमीजियों को झेलना आप सबकी मजबूरी है.इसी क्रम में मेरा एक सवाल है.बुआ से मानसिक बलात्कार (या अभिसार)नैतिक है अथवा अनैतिक.अब आप इसे क्या मानते हैं.इससे हमें कुछ भी लेना-देना नहीं.हमारी दृष्टि में तो यह पूरी तरह नैतिक है.मानसिक भी और शारीरिक भी(यदि बुआ जी राजी हों तो)दरअसल,हमारे यहां इसकी पूरी आजादी है.हो सकता है आपको मेरी बात अच्छी न लगे.लेकिन है सोलह आने सच्ची.सुलतानपुर व इसके आसपास के जिलों में बुआ से मानसिक व्याभिचार के पीछे जो कारण है,यदि आप उस पर गौर फरमाएंगे तो शायद आपको यह बात बुरी न लगे.हुआ यह कि भगवान राम व उनके तीनों भाइयों द्वारा सरयू में जल समाधि लेने के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र कुश अवध के सम्राट बने.कुश अतीत की दो घटनाओं से बेहद आहत थे.पहली घटना थी उनकी बुआ द्वारा माता सीता के विरुद्ध के रची गई साजिश.दूसरी अयोध्या के एक धोबी द्वारा माता सीता के चरित्र पर टिप्पणी.अवध के लोकगीतों के अनुसार राजा दशरथ की एक दत्तक पुत्री थीं और उनका विवाह श्रंगी ऋषि के साथ हुआ था.लव व कुश जब गर्भ में थे तो परंपरानुसार ननद होने के नाते वह माता सीता की देखभाल व मार्गदर्शन के लिए मायके में लाई गई थीं.एक दिन उन्होंने माता सीता से कहा कि भाभी रावण का चित्र का बनाओ.सीता जी ने यह कह कर मना कर दिया कि उन्होंने कभी रावण के चेहरे की तरफ नजर ही नहीं डाली थी.लेकिन बुआ जी (माता सीता की ननद)कहां मानने वाली थीं.अनवरत हठ करती रहीं.एक दिन उनका मन रखने के लिए माता सीता ने कहा कि जब रावण अशोक वाटिका में उन्हें अपनी पटरानी बनाने का प्रस्ताव देने आया था तो वे अपने पैर के नाखूनों पर निगाह गड़ाए चुपचाप बैठी थीं.उस समय रावण के चेहरे का अक्स उनके पैर के अंगूठे के नाखून पर दिखा था.उसी आधार पर मैं तुम्हें रावण का चित्र का बना कर दिखाती हूं.जब उन्होंने चित्र बना दिया तो बुआ जी ने उसे लेकर चुपचाप भगवान राम को दिखा दिया.साथ में यह भी जोड़ दिया कि तुम अग्रि परीक्षा की बात कहते हो सीता तो अब भी रावण को याद कर उसकी तस्वीर बनाया करती हैं.उसी समय एक घटना और हो गई.रात में भगवान राम प्रजा का हाल लेने के वेश बदल कर अयोध्या में विचरण में कर रहे थे.उनके कानों में आवाज पड़ी.एक धोबी अपनी पत्नी को पीट रहा था.साथ में यह कह कर उलाहना भी दे रहा था कि तू आधी रात तक घर से बाहर रही.मैं राम नहीं हूं.जो तुझे फिर रख लूंगा.इन दोनों घटनाओं से राम इतने क्षुब्ध हुए कि उन्होंने माता सीता को वनवास दे डाला.कुश और लव वन में महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में पैदा हुए.जिन्हें महल में पैदा होने के बाद रेशम के बिस्तर मिलना चाहिए था उन्हें कुश नामक जंगली पौधे से बनी चटाई मिली.उसी पौधे के नाम पर कुश का नामकरण भी महर्षि ने किया.कुश अपनी मां साथ हुए इस अन्याय को आजीवन नहीं भुला पाए.सम्राट बनने के बाद उन्होंने अयोध्या के बजाय वहां से ३६ मील दूर गोमती के तट पर कुशभवन पुर नामक नगर बसा कर उसे अपनी राजधानी बनाया.बुआ और अयोध्यावासियों के प्रति उनके मन में ग्रंथि थी कि इनकी वजह से ही उनकी पतिव्रता मां को दारूण दुख झेलने पड़े.साथ यह भी कि सरयू में उनके पिता और चाचा ने जल समाधि ली थी.कुशभवन पुर में बुआ के प्रति मजाक की भी परंपरा इसी कारण प्रारंभ हुई.यों भी मां का सबसे ज्यादा उत्पीड़न बुआ ही करती है.सो मां के सुयोग्य पुत्र होने के नाते हमारा कर्तव्य है कि हम मां के साथ बुआ द्वारा किए गए दुव्यवहार का ऋण अवश्य चुकाएं.