सोमवार, 2 नवंबर 2009

बिसंहिधिया तुहैं बोलावत बा

---- सत्येन्द्र श्रीवास्तव ”सच्चन“
ऊ अमवन कै सरदार रहा ,
ऊ सीपर कै भंडार रहा,
जे देखे अहै उहै जाने ऊ केतना छायादार रहा।
ऊ भरे सुगंध मिठास रहा ,
सब आमन मा ऊ खास रहा।
हम कहब तीत चाहे लागे,

ऊ अपनेन मा इतिहास रहा।।

ऊ संत पेड जग छोड़ि गवा,

पुरवा से नाता तोड़ि गवा

“ ल्या आपन गाँव सम्हार लिया “

कहि दुखी हृदय मुँह मुंह मोड़ि गवा ।

ऊ चला गवा अब ना आए,

लउटे ना केतनव गोहराये

ऊ चला गवाअब ना आए अब ना आए।।

कूबे भरोसे बुद्धू बुधई

ढेला सुग्गा फेरई रोंघई

मंतो¨रा दसई नैपाली

ऊ देखेस भाय बहुत मनई।

परसाधी गंगादीन का

ऊ बीपत अव बिपताइन का

अव जेकरे मरे गाँव रोवा

ऊ देखेस वहिं तिवराइन का।।

केतनन का जनमत देखेस

केतनन कहैं मरत देखेस

दिन सबकै गिरत उठत देखेस

केतनन का बनत बिगडत देखेस।

छोटकवा उठा अव बडा होइगा

जे गिरा रहा ऊ खडा हो¨इगा

ऊ सोचत चुप्पे खडा रहा

जग मा केतना नखडा होइगा।।

मनई मनई का खात बाय

रख्खे बा मुल ललचात बाय

केहु सेटत नाय अहै केहु का

अपनेन मा मगन देखात बाय।

सचरी बा अब तव राजिनीति

उठिगै दुनिया से प्रेम प्रीत

थैली मा मुकदमा कै कागज

आपन डफली आपन बा गीत।।
सगरे दिन अमवा बिनत रही,

गाही लगाइ के गिनत रही,

हम ओकरी डारी पै बइठा,

सुलतापुर टेसन लखत रही।

दुपहरिया खुब मन्नात रहै,

हम पेडे़ तरे छहांत रही,

जरिया के गाहिन आम बिने,

हम धरे औखात रही।

रमसुखवा से दुपहरिया भै

केतना किस्सा सुनि लेत रहे,

हर किस्सा पै बिसंहिधिया कै

एक घुला आम हम देत रहे।

ऊ एक पेड़ यादें हजार,

हम कही काव !

कही सकित नाय,

वँह पेडे़ का - बस इहै कहब

-हम भूलि केनि रहि सकित नाय,

रमसुखवा कतहूँ चला गवा,

बिसंहिधियौ तौ अब नाय रहा,

केहु झटकै अबै तलुक मोर जिउ,

ओन दुइनो का गोहराय रहा।

बिसंहिधिया केनि छाया मां

हम खेलि खेलि के बड़ा भएन

बिधना हमका बनबास केहेस

सब कहैं कि गोड़ पै खड़ा भएन

आजौ कबहुँ दुपहरिया मां,

जब भुंइ तावा अस तपत रहै

या बहुत देर तक रात गए,

जांगी औ बयारो चलत रहै।

लागत है केहु गोहरावत बा -

हे सच्चन, हे सच्चन,! भइया,

तू लौटि घरे का आइ जा

बिसंहिधिया तुहैं बोलावत बा

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