गौंधिरिया
सत्येन्द्र श्रीवास्तव
पूरब से सूरज गा पच्छिम
ललछहूँ रंग होइगा मध्दिम,
नदिया के तीरे कै बालू
चमकै तरई जईसे टिमटिम।
चरवाहै गोरू हाँक चलेन,
वँह पार रहेन जे डाँक चलेन
सब काम खतम भा वँह दिन कै
सब दाबे डंडा काँख चलेन
सब दाबे डंडा काँख चलेन
धुंअना कै चादर फैल गई,
अंधियरिया मुंई कै रखैल भई
माइन सब लड़िकन का डाँटे
बंडी कइसे मटमैल भई?
केहु केहुए कहैं बोलावत बा,
केहु ‘खुंटा खुंटा‘ गोहरावत बा
बांसुरी सुनाति अहै, पछरा
-चरवाहा कौनौ आवत बा।
खोंघला का लउट परी चिरई,
गोरुन सब बंधि गै सरिया माँ
केहु ’काका हो ऽ’ चिल्लात अहै
केहु खाँसत अहै दुअरिया माँ।
इ रोजै कै करदसना आ,
औ रोजै कै इ गौंधिरिया;
इ छोड़ि छाड़ि सुगना जो उड़े
तौ केस माई औ केस तिरिया
फिर अइसेन गौंधिरिया अइहैं
औ अइसेन तबौ बयार चले;
मुल ओकरे लेखा माटी बा -
जे छोडि छाडि संसार चले।
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जवाब देंहटाएंहुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं.......
जवाब देंहटाएंइधर से गुज़रा था] सोचा सलाम करता चलूं
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जवाब देंहटाएंकृपया दूसरे ब्लॉगों को भी पढें और उनका उत्साहवर्धन
करें
चिट्ठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. लेखन के द्वारा बहुत कुछ सार्थक करें, मेरी शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएं---
महिलाओं के प्रति हो रही घरेलू हिंसा के खिलाफ [उल्टा तीर] आइये, इस कुरुती का समाधान निकालें!
swagat! apane padosi ki taraf se qubool kijiye
जवाब देंहटाएंबहुत नीक कवित्त लिखले बानी
जवाब देंहटाएंबधाई