बुधवार, 25 नवंबर 2009

वह अबला स्कूटर और मेरी कविता


............... सत्येन्द्र श्रीवास्तव " सच्चन "


पडोसी के स्कूटर को देख अक्सर मेरी आँखें भर आतीं है मैं उस पर एक कविता लिखना चाहता हूँ । वह कविता निश्चित ही करुण रस की होगी क्यों कि उस स्कूटर में करुणा का सागर भरा हुआ है। सुबह सुबह उसे स्टार्ट करते समय पडोसी का लडका जब उसका एक्सीलेटर रूपी कान क्रूरता पूर्वक ऐठता है तो वह ऐसा भयंकर आर्तनाद करता है जैसे कोई सनकी ऊँटनी पीटी जाने पर बमक कर चिल्ला रही हो । हाय अबला ऊँटनी हाय अबला स्कूटर ! रात खुशी खुशी पार्क किए जाने के बाद भी वह सुबह रूठा मिलता है और सडक पर इधर से उधर अनेकों बार धक्का लगाए जाने पर भी स्टार्ट होने की ऊर्जा वह बुजुर्ग इस उमर में लाख यत्नों के बाद भी नहीं जुटा पाता। स्टार्ट होते ही वह दीन अपनी करुण पुकार से सारा वातावरण हिला डालता है बच्चे ताली पीट पीट चिल्लाते हैं मेरा हृदय विलख विलख रो पडता है और मैं स¨चता हँ कि दुनिया अथाह पीडा के समुन्दर के सिवा कुछ नहीं । अपने कुल के गौरव जिस ऐतिहासिक स्कूटर को हमारे पड़ोसी का लडका रणबांकुरे घोड़े से कम नहीं समझता वह मुझे कहीं से जबरन पकड कर लाया गया एक लुटा पिटा मजदूर दिखता है। फटी बेहाल सीट, चाँय चाँय मूड की तरह दांए बाएं हिल डुल कर चलते पहिए, जगह जगह से फूला पिचका मडगार्ड, बदरंग हैंडल, टेप लगा कर चिपकाया गया हेड लाइट का शीशा ऐसे जैसे अस्पताल से निकला कोई बदनसीब पकड कर बंधुआ बना लिया गया हो और शहर में खुले आम जुल्म ओ सितम के बीच दौड़ लगाने को मजबूर हो । हार्न ऐसा जैसे कोई गमजदा बकरी अपना गला फाडे डाल रही हो । पडोसी का लडका उस भोले और निर्दोष स्कूटर की गहन पीडा की अवहेलना करता हुआ उस बेजुबान पर सवार हो कभी मेला तो कभी सिनेमाअऔर कभी कभी दोस्तों के साथ रंगरंगेलिया मनाने किसी रेस्तरां अथवा जाता है तो मैं इस संसार के विरोधाभास का अध्ययन करता हूं: एक तरफ जश्न में डूबे इंसान और दूसरी तरफ उदास खडा यह शोषित शोकाकुल स्कूटर । इसकी बेचारगी देख कागजात आदि चेक करने खडे “ गुर्र टाइप “ मूँछ¨ वाले प्रतिभाशाली ठुल्ले भाई स्वयं ही क्षमा माँग इसे आगे जाने का इशारा कर देतें हैं धन्य है हमारी लोकप्रिय पुलिस के ये विद्वान सपूत जो इतना तो समझ लेते हैं कि सताए को आखिर क्या सताना। शहर भर के मैकेनिक इसे देख श्रद्धा से झुका झुका किनारे हट लेते हैं मरे को और क्या मारना ! मन्नू इस असहाय पर क्षमता से तीन गुना बोझ लाद कर इसका शोषण करते हुए ही ही कर दाँत निकाले इस स्वार्थी समाज की आंखों के सामने ही दौड़ लगआता है फिर भी उस को बचाने न कोई व्यक्ति न संस्था आगे आती है। इस विषय पर चूँकि किसी कवि ने लेखनी नहीं उठाई इसलिए मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरी करुण रस की वह कविता समाज द्वारा सताए जा रहे ऐसे लाखों स्कूटरओ के हित में एक vidroh कारित करनें में सफल हो paayegee और एक दिन ऐसा भी आएगा कि अपमान व अन्याय के तले जीवन व्यतीत करते देश के सभी स्कूटर मुक्त हो सम्मान का जीवन जिएंगें और इसमें मेरी कविता का महत्वपूर्ण yogdaan माना जाएगा !

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